11 March 2018

सेल्फी की चाहत में बुद्ध की 1000 साल पुरानी प्रतिमा पर चढ़े पर्यटक, हो गया बवाल

दोस्तों ! सेल्फी के लिए लोग क्या कुछ नहीं कर गुजरते। यह एक चौकाने वाली घटना है एक पर्फेक्ट सेल्फी की चाहत में कई लोगों की जान भी जा चुकी है। लेकिन सेल्फी का क्रेज कुछ भी करा देता है। चीन में कुछ टूरिस्ट मंदिर घूमने गये तो बुद्ध की प्रतिमा के ऊपर ची चढ़ गए।

राजा शुद्धोधन ने सिद्धार्थ के लिए भोग-विलास का भरपूर प्रबंध कर दिया। तीन ऋतुओं के लायक तीन सुंदर महल बनवा दिए। वहाँ पर नाच-गान और मनोरंजन की सारी सामग्री जुटा दी गई। दास-दासी उसकी सेवा में रख दिए गए। पर ये सब चीजें सिद्धार्थ को संसार में बाँधकर नहीं रख सकीं। वसंत ऋतु में एक दिन सिद्धार्थ बगीचे की सैर पर निकले। उन्हें सड़क पर एक बूढ़ा आदमी दिखाई दिया। उसके दाँत टूट गए थे, बाल पक गए थे, शरीर टेढ़ा हो गया था। हाथ में लाठी पकड़े धीरे-धीरे काँपता हुआ वह सड़क पर चल रहा था। दूसरी बार कुमार जब बगीचे की सैर को निकला, तो उसकी आँखों के आगे एक रोगी आ गया। उसकी साँस तेजी से चल रही थी। कंधे ढीले पड़ गए थे। बाँहें सूख गई थीं। पेट फूल गया था। चेहरा पीला पड़ गया था। दूसरे के सहारे वह बड़ी मुश्किल से चल पा रहा था। तीसरी बार सिद्धार्थ को एक अर्थी मिली। चार आदमी उसे उठाकर लिए जा रहे थे। पीछे-पीछे बहुत से लोग थे। 

टूरिस्ट प्लेस पर अजीब हरकतें हुए और सम्पत्तियों को नुकसान पहंचाने वाले कई टूरिस्ट्स को आपने देखा होगा,मगर चीन के जियानज्ञान मंदिरमें कुछ युवक 1000 साल पुरानी बुद्धकी प्रतिमा पर चढ़ गए और सेल्फी लेने लगे इसका विडियो और तस्वीरें वायरल होने के बाद लोगों में इन युवकों को लेकर काफी गुस्सा है।

सिद्धार्थ ने पहले तो केवल तिल-चावल खाकर तपस्या शुरू की, बाद में कोई भी आहार लेना बंद कर दिया। शरीर सूखकर काँटा हो गया। छः साल बीत गए तपस्या करते हुए। सिद्धार्थ की तपस्या सफल नहीं हुई। शांति हेतु बुद्ध का मध्यम मार्ग : एक दिन कुछ स्त्रियाँ किसी नगर से लौटती हुई वहाँ से निकलीं, जहाँ सिद्धार्थ तपस्या कर रहा थे। उनका एक गीत सिद्धार्थ के कान में पड़ा- ‘वीणा के तारों को ढीला मत छोड़ दो। ढीला छोड़ देने से उनका सुरीला स्वर नहीं निकलेगा। पर तारों को इतना कसो भी मत कि वे टूट जाएँ।’ बात सिद्धार्थ को जँच गई। वह मान गये कि नियमित आहार-विहार से ही योग सिद्ध होता है। अति किसी बात की अच्छी नहीं। किसी भी प्राप्ति के लिए मध्यम मार्ग ही ठीक होता है ओर इसके लिए कठोर तपस्या करनी पड़ती है। वे 80 वर्ष की उम्र तक अपने धर्म का संस्कृत के बजाय उस समय की सीधी सरल लोकभाषा पाली में प्रचार करते रहे। उनके सीधे सरल धर्म की लोकप्रियता तेजी से बढ़ने लगी। चार सप्ताह तक बोधिवृक्ष के नीचे रहकर धर्म के स्वरूप का चिंतन करने के बाद बुद्ध धर्म का उपदेश करने निकल पड़े। आषाढ़ की पूर्णिमा को वे काशी के पास मृगदाव (वर्तमान में सारनाथ) पहुँचे। वहीं पर उन्होंने सर्वप्रथम धर्मोपदेश दिया और प्रथम पाँच मित्रों को अपना अनुयायी बनाया और फिर उन्हें धर्म प्रचार करने के लिये भेज दिया। महाप्रजापती गौतमी (बुद्ध की विमाता) को सर्वप्रथम बौद्ध संघ मे प्रवेश मिला।आनंद,बुद्ध का प्रिय शिष्य था। बुद्ध आनंद को ही संबोधित करके अपने उपदेश देते थे।

इस मामले पर साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट ने एक चश्मदीद के हवाले से लिखा है कि उन टूरिस्ट्स की यह हरकत ना सिर्फ अनैतिक थी, बल्कि खतरनाक भी थी। हालांकि इस मामले में यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि उन युवकों की हरकतों से मूर्ति को नुकसान पहुंचा है या नहीं लेकिन सोशल मीडिया पर लोग इन्हें सजा दिलाए जाने की मांग कर रहे हैं। हमें ऐसा कोई काम नहे करना चाहिए जिससे हमरे समाज में परेसानी हो वैसे स्थानीय प्रसाशन का क्या रवैया है इसके बारे में पता नहीं चल पाया है।वैसे सेल्फी का क्रेज बहुत पुराना नहीं है। सेल्फी के लिए कई बार युवाओं ने जान की बाजी पर भी दांव लगाया है

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