15 December 2020

EPS 95 Pension : व्यंग - बहुत सुन रखा है मोदी है तो मुमकिन है

 EPS 95 Pension : व्यंग - बहुत सुन रखा है मोदी है तो मुमकिन है

देश के बुजुर्गों ने कभी ऐसा सोचा न होगा कि ऐसे दिन भी देखने पड़ेंगे कि उनकी ही चुनी हुई जनता की सरकार उनसे सड़कों में लेट लेट कर अपनी जायज मांगो को मनवाने की लिये अपने अपने घरों से हजारों मील दूर दिल्ली जा कर लंगड़ाते,घसीटे,कमजोर कदमों के साथ देश के ,


प्रधानमंत्री जी से सिर्फ 10 मिनट देने और उनकी गुहार सुनाने के लिए इतना सब कुछ करना पड़ सकता है।तीन साल से भी ज्यादा वक्त गुजर गया लेकिन धन्य है कि दुनियाँ के सबसे बड़े प्रजातंत्र कहे जाने वाले इस देश के मुखिया के पास अपने जिंदगी से हारे,निर्बल,निःसहाय बुजुर्गों की तकलीफों को सुनने के लिए 10 मिनेट का भी वक़्त नही।


जनप्रतिनिधि ,जनता के सेवक,ये सारे शब्द निरर्थक से हो गए हैं।एक तरफ दमड़ी दमड़ी जोड़ कर न्यायालाओं में वर्षों से संघर्ष जारी रखे हुए है,तो दूसरी ओर कमजोर शरीर के साथ सड़कों में संघर्ष करने को मजबूर हैं।


कोई सरकार इतनी असंवेदनशील कैसे हो सकती है,जो सबके साथ सबके विकास की बात कहते नहीं थकती।हमें तो लगता है कि शीघ्र ही यदि मांगो पर कोई सकारात्मक हल नहीं निकाला जाता है तो लोगों को भी अपनी सोच में बदलाव लाना ही होगा...लेकिन किस तरह ?
शायद मित्रों के पास इसका कोई जबाव हो

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